कम्बोडिया की रामायण रीमकर के अनेक रूप

 

Meta Description: Reamker is the Cambodian adaptation of the Hindu epic Ramayana. The narrative is the same, but the characters Rama, Sita, and Lakshman have Cambodian names.

 

 

कम्बोडिया की रामायण रीमकर के अनेक रूप

 

भारत की हर मुख्य भाषा में अपनी रामकथा है। पर इससे भी बढकर, दक्षिण पूर्व एशिया के हर देश की अपनी रामायण है, जो अभी भी पढी, सुनी और देखी जाती है। इन देशों में विश्वभर से आए पर्यटक, मंच पर रामलीला के नृत्य और मंदिरों में राम कथा की मूर्तियाँ का आनंद उठाते हैं और लौटकर इस भारतीय संस्कृती का प्रचार अपने देशों में करते हैं।

 

कम्बोडिया की रामायण रीमकर

 

 

 

आज मैं आपको कम्बोडिया की रामायण से परिचित करवाऊंगा। इस महाकाव्य का नाम रीमकर है, जिसका अर्थ राम की महिमा है। यह आदि काव्य वाल्मीकि रामायण पर आधारित है और इसे कम्बोडिया के राष्ट्रीय काव्य का दर्जा प्राप्त है। हिन्दु धर्म कम्बोडिया कैसे आया   इसका विवरण मैंने पहले किया है। हिन्दु धर्म के साथ साथ रामायण और महाभारत भी कम्बोडिया को विरासत में मिली।

 

रीमकर का इतिहास

 

रीमकर का सर्वप्रथम उल्लेख सातवीं शताब्दी के एक शिलालेख में पाया जाता है। परन्तु रीमकर की सबसे प्राचीन उपलब्ध प्रति 16वी शताब्दी की है। रीमकर वाल्मीकि रामायण का अनुवाद नहीं बल्कि अनुकूलन है। कथा सार वही है – अच्छाई और बुराई का संघर्ष और अंत में अच्छाई की विजय। परन्तु रीमकर में कुछ प्रसंग जोडे गए हैं जो किसी भी भारतीय रामकथा में नहीं हैं। इनमें से मैं कुछ का उल्लेख करूँगा, पर पहले एक स्पष्टीकरण आवश्यक है। हनुमान के सिवाय रीमकर में सभी मुख्य पात्रों के नाम भारतीय रामायण से भिन्न हैं।

 

  • ·       श्रीराम – प्रीह रीम
  • ·       सीता – नेआंग सेडा
  • ·       लक्ष्मण – प्रीह लीक
  • ·       रावण – क्रोंग रीप

 

हनुमान और सुवन्नामच्छ

 

रीमकर में जो अनोखे प्रसंग हैं उनमें से सुवन्नामच्छ का सबसे रोचक है। सागर पर सेतु निर्माण का काम जारी था। पर थोडा सेतु बनते ही टूट रहा था। हनुमान देखते हैं कि जलपरियों का एक समूह पुल गिरा रहा है। हनुमान जलपरियों की रानी सुवन्नामच्छ से मिलते हैं और इस हरकत का कारन पूछते हैं। सुवन्नामच्छ लंकाराज की पुत्री है। अपने पिता के आदेश पर वह सेतु निर्माण में बाधा डाल रही है ताकि वानर सेना लंका नहीं पहुँचे। जब हनुमान उसे नेआंग सेडा के अपहरण और प्रीह रीम के शोक की करुण गाथा सुनाते हैं, सुवन्नामच्छ द्रवित हो उठती है और फिर सेतु निर्माण के कार्य में कोई रुकावट नहीं डालती।

 

कथा यहाँ समाप्त नहीं होती है। हनुमान और सुवन्नामच्छ एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं और जलपरियों की रानी एक पुत्र मच्छानु को जन्म देती है। मच्छानु के अंग का ऊपरी भाग वानर का है और निचला भाग मत्स्य का है। रीमकर में आगे मैयराब रीम और लीक को बंदी बनाकर पाताल ले जाता है और हनुमान उन्हें बचाने जाते हैं। वहाँ हनुमान और मच्छानु के बीच घमासान युद्ध होता है, जो अनिर्णायक सिद्ध होता है। कहानी को संक्षिप्त रखते हुए इस बात का खुलासा होता है कि ये दोनों पिता पुत्र हैँ। अंत में मच्छानु अपने पिता की गुप्त रूप से सहायता करता है। इस प्रसंग का दूसरा भाग भारतीय रामायणों में मकरध्वज के विवरण से मेल खाता है।        

 

शिल्प और नृत्य में रीमकर

 

कम्बोडिया में रीमकर सिर्फ पढने वाला ग्रंथ नहीं है। इसने मंदिरों में शिल्पकला और रंगमंच पर नृत्यकला को जन्म दिया है। सुवन्नामच्छ के प्रसंग का सजीव चित्रण फिमाई के मंदिर में प्रस्तुत है। अंगकोर वाट में रीमकर की कई झाँकियाँ लाखों पर्यटकों को हर वर्ष खींच लाती है। लाखोन शैली में रचा रीमकर का नृत्य प्रसिद्ध है। दिन में अंगकोर वाट का अन्वेषण करें और शाम में रीमकर नृत्य का आनन्द उठाएँ। अप्सरा थिएटर नामक संस्था के निर्मित नृत्य की कुछ झाँकियाँ नीचे दीखने मिलेंगी।

 

 

प्रीह रीम, प्रीह लीक, और हनुमान

 

 

नेआंग सेडा और क्रोंग रीप

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