मैया, मैं तो चंद खिलौना लैहों

हाँ, यह सूरदासजी का पद है जिसमें बालकृष्ण लीला का वर्णन है, फिर भी इस राम कथा की श्रृंखला में सार्थक है। जब अपने छोटे बच्चों को पहली बार पूर्णिमा का चाँद दिखाते हैं तब अक्सर कहते हैं कि आसमान में गेंद या गुब्बारा देखो। और बालक चंद्रमा से खेलने का हठ कर बैठता है। यह एक सामान्य और स्वाभाविक अनुभव है।

कन्नड के प्रसिद्ध लेखक कुवेम्पु ने श्री रामायण दर्शनम नामक राम कथा पर महाकाव्य रचा है। इस कृति को 1967 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सुशोभित किया गया है। काव्य में एक सुंदर प्रसंग है जब रामलला पूनम के चाँद को हाथों में पकड़ने का हठ कर लेते हैं।

पहले कौशल्या माँ समझाती है कि चाँद धरती पर नहीं आ सकता। फिर हीरों से जड़े अन्य खिलौनों का प्रलोभन देती हैं, पर लला पर कोई असर नहीं होता। अंत में डाँट फटकार भी असफ़ल रहती है। महाराज दशरथ पुत्र को गोद में लेते हैं पर चुप नहीं करा पाते। अब कैकयी माँ की बारी आती है। वे एक छोटा आइना राम के हाथ में पकड़ाती हैं और सहजता से उसमें चंद्रमा का प्रतिबिंब दिखाती है। राम लला आनंदित हो खिलखिलाने लगते हैं। कैकयी और राम का यह निकट बंधन कई प्रश्न उठाता है, पर इस विषय पर चर्चा कभी और करेंगे।

सूरदासजी के भजन में यशोदा माँ ने अलग, पर उतनी ही रोचक, युक्ति अपनाई। उन्होंने कहा -

"आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहिं न जनैहों

हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहों।"

और कान्हा ने चाँद पाने का जिद छोड़कर विवाह के लिए तुरंत हामी भर दी।

कवियों द्वारा मानवीय अनुभूतियों को राम कथा में पिरोना, कथा में आत्मीयता प्रदान करता है। जब हमारे इष्ट को हमारे जैसे प्रस्तुत पाते हैं तब आनन्द कई गुना बढ़ जाता है।


Comments

Popular posts from this blog

सीताजी का शक्ति स्वरूप

उत्तररामचरित