सीताजी का शक्ति स्वरूप

 

शक्ति आज की राजनीतिक चर्चा में गर्माई है। जब से राहुल गान्धी ने शक्ति शब्द का अभद्र प्रयोग किया भाजपा पलटवार में जुट गई हे। सोशल मीडिया पर हमारी दैवी शक्तियों की सूचियां प्रचलित हैं और साथ में उनके अधुरी शत्रु। पर इन सूचियों में एक नाम नहीं दीखता और वह है सीताजी का।

सीताजी नें कभी शस्त्र नहीं धारन किए थे - ना ऋषि वाल्मीकि की कथा में और ना ही गोस्वामी तुलसीदास की कथा में। परंतु सीताजी थीं शक्ति का स्वरूप। अद्भुत रामायण महर्षि वाल्मीकि की एक अन्य रचना है जो उतनी ही प्राचीन मानी जाती है। कथा का प्रथम भाग सामान्य राम कहानी है। सीताजी के अद्भुत शक्ति स्वरूप का वर्णन रचना के पूर्व भाग में है।

ग्रंथ के सप्तदश सर्ग का प्रसंग है। राम के राजतिलक पश्चात सीताजी  ने मंद परिहास भाव से दरबार में कहा कि लंका के रावण का वध कोई पराक्रम नही था। उसका बड़ा भाई, सहस्त्रवदन रावण, ब्रह्माण्ड में पुष्कर द्वीप से राज्य करता है और वह लंका के रावण से दस गुना बलवान और क्रूर है। वीर कहलाने योग्य वह होगा जो सहस्त्रवदन रावण का वध करेगा।

राजा राम ने चुनौती स्वीकारी और सेना, मंत्री और सीताजी सहित पुष्पक विमान पर सवार वे पुष्कर द्वीप पहुँचे। घमासान युद्ध हुआ। अंततः द्वंद युद्ध में सहस्त्रवदन रावण ने राम को मूर्छित कर दिया।

तब सीताजी ने अपना सौम्य रूप त्याग कर दिव्य विकराल आकृति धारन की। शांतिकाल में जो सिय माता थीं संकट में भद्रकाली स्वरूपा बन गई। अद्भुत रामायण में उनके अंग अंग का भयानक विस्तृत वर्णन है। त्रयोविंश सर्ग के श्लोक का अनुवाद है:

"दीर्घ जंघा वाली, महाशब्द वाली, मुण्ड माला के आभूषणों से विभूषित, हड्डियों की छोटी-छोटी घंटियों से सजी हुई, भयावना, भयंकर वेग तथा पराक्रम वाली ।।9।।"

राम घोर संघर्ष के बाद भी इस रावण को परास्त न कर सके थे। परंतु शक्ति स्वरूपा सीताजी विमान से उतरी और क्षण भर में रावण के सौ शीष अपने खङ्ग से काट दिये। उनके मस्तिष्क से सहस्र मातृका उत्पन्न हुई और सबने राक्षस सेना में हाहाकार मचा दिया। 

शक्ति अक्सर शांत रहती है, पर आवश्यकतानुसार वह विकराल रूप धारण कर लेती है। उसे चुनौती देना मूर्खता है।



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