महर्षि वाल्मीकि का योगवासिष्ठ
महर्षि वाल्मीकि का योगवासिष्ठ
Meta Description: Yoga Vasishtha is one of the four Itihaases of Hindu culture. Written by Valmiki, it is the knowledge of Yoga imparted by Vasishtha to Rama. Read an overview.
सभी जानते हैं कि महर्षि वाल्मीकि आदि काव्य रामायण के
रचयिता हैं। परंतु यह जानकारी दर्लभ है कि उन्होंने हमारे एक और इतिहास कि रचना की
है – योगवासिष्ठ। अन्य दो इतिहास – महाभारत और हरिवंश – के लेखक महर्षि वेदव्यास
हैं। आगामी अश्विन पूर्णिमा हम महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाएँगे। इस पावन अवसर पर
हम योगवासिष्ठ से क्यों न अवगत होएँ। पर पहले एक अन्य बात का स्पष्टीकरण आवश्यक
है।
इतिहास और हिस्टरी
हमें
बताया गया है कि इतिहास अँग्रेजी शब्द हिस्टरी का हिंदी अनुवाद है। परंतु यह सत्य
नहीं है। दोनो अवधारणाओं में मौलिक अंतर है। हिस्टरी केवल विगत घटनाओं का अभिलेख
है। इतिहास उन घटनाओं पर आधारित उपदेश है जो हमारे भविष्य को साकार बना सकता है।
इस हेतु घटित प्रसंगों को कथा के रूप में ढाला जाता है। कलहण ने अपनी रचना
राजतरंगिणी में लिखा हैः
धर्मार्थ काम मोक्षाणाम उपदेशं
समन्वितम्।
पूर्ववृत्तं कथायुक्तं इतिहासं
प्रचक्षते।।
हमारे चारों इतिहासों को, विशेष कर योगवासिष्ठ को, हमें इस
दृष्टिकोण से समझना होगा।
योगवासिष्ठ की भूमिका
योगवासिष्ठ रामवतार युग
की रचना है। रचनाकार महर्षि वाल्मीकि हैं, परंतु शीर्षक में नाम वसिष्ठ मुनि का है। ग्रंथ का प्रसंग है कि कुलगुरू वसिष्ठ दशरथ पुत्र राम को
योग का ज्ञान प्रदान कर कहे हैं। विषय अत्यंत आध्यात्मिक व दार्शनिक है। इसके
सिद्धांत अनुसार एकमात्र चेतन तत्व परब्रह्म है। संसार में जो निर्मित-नष्ट होता
दीखता है, वह ब्रह्म रूपी सागर पर उठती-गिरती क्षणिक लहरों समान है। इस माया को
तरने के लिये अहंकार का नाश होना आवश्यक है।
नाना प्रकार की पीड़ाओं
से छुटकारा पाने के लिए, और अंत में मोक्ष प्राप्ति के लिए, गुरू वसिष्ठ रामजी को
अनेक योग साधनाएँ समझाते हैं। योगवासिष्ठ में स्थान स्थान पर भक्ति और सदाचार का
भी महत्व बताया गया है। प्रवचन के अलावा, संवाद और कथा का भी ग्रंथ में प्रतिपादन
किया गया है। अतःएव योगवासिष्ठ पूर्ण रूप से इतिहास प्रमाणित होता है।
योगवासिष्ठ की संरचना
योगवासिष्ठ अन्य कई नामों से प्रचलित है, जिनमें
महारामायण, वसिष्ठ रामायण, और ज्ञान वसिष्ठ प्रमुख हैं। ग्रंथ छह प्रकरणों में
विभाजित है, जो अध्यात्मिक जागरन के अलग अलग पढ़ाव और पहलू पर प्रकाश डालते हैं।
· वैराग्य
· मुमुक्षु व्यवहार
· उत्पत्ति
· स्थिति
· उपशम
· निर्वाण
योगवासिष्ठ से दो कथाएँ
भए प्रकट कृपाला का लक्ष्य
पाठकों को राम कथा के इतिहास से अवगत कराना है। इसलिए मैंने योगवासिष्ठ से दो
प्रसंग चुने हैं और उनपर चर्चा करूँगा।
लीला की कथा
यह
प्रसंग उत्पत्ति प्रकरण से है। राजा पद्म के देहांत पश्चात, उनकी पत्नी रानी लीला
शोक में डूब जाती है। तब भगवती सरस्वती उन्हें दर्शन देती है और जीवन के मायावी
होने का ज्ञान देती है। अपनी सिद्धी द्वारा सरस्वती लीला को उनके विगत जन्मों से
अवगत कराती है। वह समझाती है कि जन्मों की श्रंखला सपनों की श्रंखला समान होती है।
नींद से उठने के बाद हम सपनो की घटनाओं को महत्व नहीं देते। जब हम जन्मों की
श्रंखला से उभर जाएँगे और मोक्ष प्राप्त कर लेंगे तब उनमें घटित प्रसंग सपनों से
प्रतीत होंगे। इसलिए जीवन में उल्लास और शोक दोनों व्यर्थ हैं। हमें भवसागर तरने
पर ही ध्यान धरना चाहिए।
अहल्या और इंद्र
यह कथा गौतम पत्नी अहल्या और देवराज इंद्र की नहीं है, परंतु उससे कुछ मेल खाती है। अहल्या मगध की रानी थी और इंद्र एक संदेहजनक चरित्र का ब्राह्मन पुत्र। ऐतिहासिक कथा से प्रभावित होकर इंद्र के प्रति अहल्या की अभिलाषा जागृत हो जाती है। वह इंद्र के साथ एक गूढ व्यभिचारिक रिश्ता स्थापित कर लेती है।
अंततः राजा को अपने पत्नी के विश्वासघात की सूचना मिल
जाती है। वे दोनों प्रेमियों को कठोर से कठोर दंड देते हैं पर उनका मनोबल नहीं तोड़
पाते। राजगुरु समझाते हैं कि शरीर का अंत करने से इस रिश्ते का अंत नहीं होगा
क्योंकि रिश्ते की उत्पत्ती मन से हुई है। ज्ञान योग के माध्यम से अहल्या को
समझाना होगा कि उसका अहल्या होना माया है और उसे मोक्ष के प्रति आकर्षित करना
होगा।
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