नरेंद्र कोहली की अहल्या
Meta Description: Narendra Kohli Ahalya is
different from Valmiki Ramayana and Ramacharita Manas. This retelling of Ahalya’s
curse and redemption sends a strong social message.
नरेंद्र कोहली की अहल्या
इन्सान
भले राम कथा का पीछा छोड़ दे लेकिन राम कथा उसका पीछा कभी नहीं छोड़ती । डेढ़ वर्ष पहले मैंने प्रण लिया था कि मैं नियमित
रूप से विविध राम कथाओं पर मेरे विचार प्रस्तुत करूँगा । परंतु जीवन की आपाधापी
में यह सिलसिला छूट गया ।
हाल ही
में कुछ घटनाएँ घटी जिन्होंने इस तोड़े हुए प्रण को मेरे सम्मुख खड़ा कर दिया ।
कम्बोडिया की यात्रा दौरान अंगकोर वॉट के प्राचीन मंदिर की दीवारों पर राम कथा
अंकित देखी । उसी देश की स्थानीय रामायण का नाटकीय झलक देखा । लौटने पर नरेंद्र
कोहली जी का उपन्यास अहल्या पढ़ा । और कुछ लिखने को दिल मचलने लगा ।
यह
विवरण अहल्या पर आधारित है । मैंने पहले महर्षि वाल्मिकी के और गोस्वामी
तुलसीदासजी के अहल्या प्रसंगों की तुलना की थी । वाल्मीकि रामायण में ऋषि गौतम
अहल्या को अदृश्य होने का श्राप देते हैं । राजकुमार राम आश्रम में प्रवेश कर
उन्हें श्राप मुक्त करते हैं और उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं । तुलसी
रामायण में ऋषि अहल्या को पाषाण ग्रस्त कर देते हैं । प्रभु श्रीराम उन्हें स्पर्श
कर पुनः चेतना प्रदान करते हैं और फिर भक्त अहल्या प्रभु के चरणों में नतमस्तक हो
जाती हैं ।
नरेंद्र
कोहली इन दोनों प्रसंगों को अत्यंत सुंदरता के साथ मिश्रित करते हैं । परंतु इस से
पहले एक बात आवश्यक है । इस उपन्यास में ऋषि गौतम अहल्या को श्राप नहीं देते हैं ।
अपनी अर्द्धांगिनी को पवित्र और निर्दोष मानकर उसका पूरा साथ देते हैं । जब सारे
ऋषिगण अहल्या को दूषित ठहरा कर आश्रम त्याग देते हैं तब भी गौतम उसके साथ दृढ़
खड़े रहते हैं । हालाँकि प्राचीन रामायणों में ऐसा नहीं होता है, परन्तु आज के कथा की यही माँग है - आज के समाज के लिए यही सीख आवश्यक
है । पर कथाक्रम को तो बढ़ना है। अहल्या अपने पुत्र के भविष्य का वास्ता दे कर
गौतम को मजबूर करती है कि वे उसे और आश्रम को त्यागें ।
नरेंद्र
कोहली जी की अहल्या अदृश्य नहीं होती । वह आश्रम के बाहर नहीं जाती और कोई आश्रम
के भीतर नहीं आता । पच्चीस वर्षों तक किसी ने उसे नहीं देखा इसलिए वह अदृश्य सी
जीवित रही। यह अहल्या पत्थर में भी परिवर्तित नहीं हुई । धीरे-धीरे उसकी चेतना जड़
होती गई और अनुभव करने की शक्ति हीन होने लगी । वह घंटों स्थिर होकर शून्य में
ताकती रहती । पाषाण हुए बिना पाषाण सी बन गई ।
महर्षि
विश्वामित्र के साथ राम आश्रम में आए और गुरु माता के चरणों को छूकर प्रणाम किया ।
इस स्पर्श से अहल्या में चेतना जागृत हुई । आकार धुंधले से दिखने लगे । उन्होंने
ऋषिवर को पहचान कर नमन किया । विश्वामित्र ने राम से परिचय करवाया और कहा - “राम
ने तुम्हें स्वीकारा है और अब तुम बहिष्कृत नहीं रही । तुम्हारा उद्धार हो गया है
। तुम अपने पति और पुत्र के साथ रह सकती हो ।”
अहल्या
विभोर हो गई । कुछ कह न सकी, सिर्फ़ नयनों से नीर बहाती रही । उसने हाथ जोड़
नतमस्तक हो राम के प्रति अपना आभार प्रकट किया ।
मैंने
हर चौराहे पर एक अहल्या को देखा है और हर अहल्या की कथा अनोखी है ।मैं ऐसी कई
अहल्याओं से आपका परिचय करवाता रहूँगा ।
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